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देवता: मरुतः ऋषि: वसिष्ठः छन्द: पङ्क्तिः स्वर: पञ्चमः

अ॒स्मे वी॒रो म॑रुतः शु॒ष्म्य॑स्तु॒ जना॑नां॒ यो असु॑रो विध॒र्ता। अ॒पो येन॑ सुक्षि॒तये॒ तरे॒माध॒ स्वमोको॑ अ॒भि वः॑ स्याम ॥२४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asme vīro marutaḥ śuṣmy astu janānāṁ yo asuro vidhartā | apo yena sukṣitaye taremādha svam oko abhi vaḥ syāma ||

पद पाठ

अ॒स्मे इति॑। वी॒रः। म॒रु॒तः॒। शु॒ष्मी। अ॒स्तु॒। जना॑नाम्। यः। असु॑रः। वि॒ऽध॒र्ता। अ॒पः। येन॑। सु॒ऽक्षि॒तये॑। तरे॑म। अध॑। स्वम्। ओकः॑। अ॒भि। वः॒। स्या॒म॒ ॥२४॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:56» मन्त्र:24 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:26» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:24


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे मनुष्य कैसे होवें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) प्राणों के सदृश बल करनेवाले जनो ! (यः) जो (वीरः) वीर अर्थात् प्राप्त हुई बल, बुद्धि और शूरता आदि जिसको (असुरः) प्राणों में रमता हुआ बिजुली अग्नि के सदृश (जनानाम्) मनुष्यों का (विधर्ता) विशेष करके धारण करनेवाला है वह (अस्मे) हमारा (शुष्मी) बहुत बल से युक्त (अस्तु) हो (येन) जिससे (सुक्षितये) सुन्दर पृथिवी की प्राप्ति के लिये हम लोग (अपः) जलों को (तरेम) तरें (अध) इसके अनन्तर (स्वम्) अपने (ओकः) गृह के पार होवें और (वः) आप लोगों के रक्षक (स्याम) होवें ॥२४॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य, मनुष्यों को बलयुक्त करते और नौका आदिकों से समुद्र के पार होकर दूसरे देश में जाकर धन बटोरते हैं, वे आप लोगों और हम लोगों के रक्षक हों ॥२४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ते मनुष्याः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे मरुतो ! यो वीरोऽसुरो जनानां विधर्ता सोऽस्मे शुष्म्यस्तु येन सुक्षितये वयमपस्तरेमाऽध स्वमोकोऽभितरेम वो युष्माकं रक्षकाः स्याम ॥२४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्मे) अस्माकम् (वीरः) प्राप्तबलबुद्धिशौर्यादिः (मरुतः) प्राणवद् बलकारकाः (शुष्मी) बहुबलयुक्तः (अस्तु) (जनानाम्) (यः) (असुरः) असुषु प्राणेषु विद्युदग्निरिव (विधर्ता) विशेषेण धर्ता (अपः) जलानि (येन) (सुक्षितये) शोभनायै पृथिव्याः प्राप्त्यै (तरेम) (अध) अथ (स्वम्) स्वकीयम् (ओकः) गृहम् (अभि) (वः) युष्माकम् (स्याम) भवेम ॥२४॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या मनुष्यान् बलयुक्तान् कुर्वन्ति नौकादिभिः समुद्रं तीर्त्वा द्वितीयं देशं गत्वा धनमार्जयन्ति ते युष्माकमस्माकं च रक्षकास्सन्तु ॥२४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे माणसांना बलवान करतात, नौका इत्यादींनी समुद्रापार दुसऱ्या देशात जाऊन धन मिळवितात ते तुमचे-आमचे रक्षक असतात. ॥ २४ ॥